Saturday, May 30, 2015

Beparwaahiyan Yar Dee...

क्यों छोड़ा था तूने अपना ये गाँव जरा लिखना–!!! शहर जाकर ऐ मेरे दोस्त अपना पता लिखना ! क्यों छोड़ा था तूने अपना ये गाँव जरा लिखना !! क्या अब स्वाद नही रहा चूल्हे की जली रोटी में ! क्यों खफा हुआ इस आबो हवा से जरा लिखना !! माना के चंद कागज़ के टुकड़े की कमी थी यहाँ पर ! मिल जाए गर सुकून मेरे गावों जैसा जरा लिखना !! कहने को होंगे बहुत से खजाने कुबेर के तेरे शहर मैं ! मिल जाए मिटटी में खुशबु यहाँ जैसी जरा लिखना !! यंहा रोज़ लड़ता था माँ से, बात-बात पे बिगड़ता था ! पड़ी वो मार चिमटे की आये जो याद जरा लिखना !! सुना है बहुत सलीका है तेरे शहर में जिंदगी जीने का ! सो सके चैन की नींद जिस दिन वहां पर जरा लिखना !! खान पान के मिलेंगे बहुत तरीके शहर में नए नए ! बुझा सके प्यास कुए के नीर जैसी तो जरा लिखना !! कहते है बड़ी मन लुभावन होती है शहर की चकाचौंध ! दिये सी उभरती परछाई तू देख सके, तो जरा लिखना !! वैसे तो हमदर्द बहुत होंगे तेरे इर्द गिर्द तुझे सँभालने को ! मिल जाए वफ़ादार तेरे घर के पशुओ जैसा जरा लिखना !! वैसे तो भीड़ बहुत होगी तेरे शहर में अनजाने लोगो की ! मिल जाए वहां कोई दिलबर मुझ सा, तो जरा लिखना !! यूँ तो रहोगे मशगूल बहुत अपने आपमें भूलकर सब कुछ ! कभी तन्हाई में आये याद इस यार की, तो जरा लिखना !! शहर जाकर ऐ मेरे दोस्त अपना पता लिखना ! क्यों छोड़ा था तूने अपना ये गाँव जरा लिखना !!